Gita saar
श्री कृष्ण ने लगभग 5000 साल पहले, अर्जुन को श्रीमद् गीता का ज्ञान दिया था। महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन अपने सगे- संबंधियों को देखकर भाव विह्वल हो रहे थे और अपने कर्तव्य से विमुख हो रहे थे। उस समय श्रीकृष्ण ने श्रीमद् भगवत गीता का ज्ञान दिया था। जो कि आज भी हमें प्रेरणा देता है। उन्होंने यह ज्ञान उस समय प्रचलित संस्कृत भाषा में दिया था लेकिन आज संस्कृत भाषा, सामान्य जन को समझ में नहीं आ पाती है इसलिएआज हम आपको उसके प्रमुख प्रमुख अंशों का सार हिंदी की सरल भाषा में बता रहे हैं।
भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं – मैं ही सब की शुरुआत हूं और मैं ही अंत हूं। मैं शुरू से भी पहले था और सब खत्म होने के बाद भी मैं रहूंगा। सब मुझमें हैं और मैं सब में हूं। जो भी तुम छू सकते हो, देख सकते हो,चख सकते हो, वह सब माया है। सूरज, चंद्र, नदी, चांद-तारे ग्रहण,आसमान सब मैंने बनाए हैं । मैंने हीं भगवान, राक्षस, शैतान, इंसान बनाए हैं। मैं सर्वव्यापी हूं और सब में हूं। मैं ही ब्रह्मा बन सृष्टि की रचना करता हूं और मैं ही फिर रूद्र बनके उसको नष्ट करता हूं। मैं ऐसे ही सारी सृष्टि बनाता और बिगड़ता रहता हूं। जिससे सभी आत्माओं को, सदैव के लिए मुक्त होने के लिए, मोक्ष पाने के लिए, परमात्मा में हमेशा के लिए विलीन होने के मौके मिल सकें।
जगत् का निर्माण- श्रीकृष्ण कहते हैं- हे अर्जुन!आत्माओं की इसी परीक्षा के लिए और उन्हें मौके देने के लिए मैंने पांच तत्वों (वायु, अग्नि, जल आकाश, पृथ्वी) से जगत् का निर्माण किया है। जिसे हम अपनी आंखों से देख सकते हैं,कानों से सुन सकते हैं, स्पर्श कर सकते हैं, चख सकते हैं। मेरे द्वारा निर्माण होने पर भी, मनुष्य अपनी ज्ञानेंद्रियों (आंख नाक कान जिव्हा और त्वचा) से जगत को तो जान सकते हैं लेकिन मुझे नहीं। मैं उनसे परे हूं।मेरे स्वरूप को वो केवल अपनी आत्मा से ही जान सकते हैं।
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आत्मा के विषय में- श्री कृष्ण कहते हैं- हे अर्जुन! आत्मा अजर और अमर है।वह अजन्मी है। इसे कोई जला नहीं सकता।कोई काट नहीं सकता और कोई मार भी नहीं सकता। लेकिन आत्मा को परमात्मा में विलीन होने के लिए इस जीवन रूपी परीक्षा को पास करना ही होगा।
मनुष्य शरीर- श्री कृष्ण भगवत गीता में कहते हैं कि 88 करोड़ योनियों को भोगने के बाद ही मनुष्य शरीर व मस्तिष्क मिलता है। हर मनुष्य को इस पूरी परीक्षा के दौरान अच्छी या बुरी भावनाओं के चक्रव्यूह में अपने ही भाई-बहन मित्र परिवार जन के साथ डाला जाता है जिससे हर आत्मा को अपने तामस एक और राजसिक अवगुणों से निकलकर सात्विक जीवन में प्रवेश करने का मौका मिल सके। हमारे तामसिक गुण वे हैं-जो हमारे अंदर हीन भावना पैदा करके, हमें उदास बनाते हैं। राजसिक गुण वे हैं-जो मनुष्य को ईर्ष्यालु और लोभी बनाकर दूसरों का नुकसान करवाते हैं जबकि सात्विक गुणों में मनुष्य अपनी आत्मा के आसपास सभी वस्तुओं व जीवों से जुड़ता है और उन्हें प्रेम करना सीखता है। तम और रज गुणों से मुक्ति के लिए हमें सात्त्विक गुणों का विकास करना ही होगा।
श्री कृष्ण के द्वारा दिए गए गीता के उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वे पहले थे आज भी हम हीन भावना ईष्या लोभ और लालच में फंसकर, अपने जीवन के मूल कर्तव्य और प्रमुख ध्येय से विमुख हो रहे हैं। श्री कृष्ण के गीता का सार अनंत है। जिसे एक लेख में लिखना संभव नहीं है, अतः अगले लेख में हम आपको आगे के प्रमुख अंशों से अवगत कराएंगे तो साथ बने रहिए …